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डेरेक ओ ब्रायन का कॉलम:वे एक सुधारवादी, समावेशी, दयालु, फुटबॉल-प्रेमी पोप थे

मैं कैथोलिक हूं और हर रविवार चर्च जाता हूं। मैं अपने जीवनकाल में छह पोप की मृत्यु देख चुका हूं। मुझे 1963 में पोप जॉन तेईसवें की मृत्यु की याद नहीं है- क्योंकि तब मैं दो साल का था- लेकिन बाकी सभी का अवसान स्पष्ट याद है। वे प्रार्थना, शोक और स्मरण के समय थे- और समुदाय की साझा भावना के भी। लेकिन पोप फ्रांसिस का अवसान उनके समान होने के बावजूद अलग है। यह व्यक्तिगत क्षति है। वे केवल पोप नहीं थे; वे मेरी पसंद के पोप थे- सुधारवादी, समावेशी, दयालु, फुटबॉल-प्रेमी पोप। वे ग्लोबल साउथ से आए पोप भी थे, जो सामान्य-बोध की बातें करते थे। ये ऐसे गुण थे, जिन्होंने मुझे- और हमें- उनके साथ खुद को जोड़कर देखने के लिए प्रेरित किया। वे पहले जेसुइट पोप भी थे, और मैं यहां उल्लेख करना चाहूंगा कि मैंने एक जेसुइट स्कूल में पढ़ाई की थी। नहीं, यह कोई शोकलेख नहीं है। यह पोप फ्रांसिस द्वारा दुनिया को दिए महत्वपूर्ण योगदान या कैथोलिक चर्च में उनके द्वारा खोली गई खिड़कियों का विश्लेषण भी नहीं है। यह इस बारे में नहीं है कि उन्होंने कैसे ‘दया के साथ नेतृत्व किया’ या सामाजिक सुधारों की वकालत की। यह महिलाओं और एलजीबीटीक्यू समुदाय के प्रति उनके प्रगतिशील दृष्टिकोण के बारे में नहीं है। यह इस बारे में है कि वेटिकन सिटी के सबसे प्रसिद्ध निवासी मेरे लिए क्या मायने रखते थे- मैं जो भारतीय हूं और कोलकाता में जन्मा, पला-बढ़ा हूं। ब्यूनस आयर्स के पूर्व आर्चबिशप पोप फ्रांसिस जेसुइट ऑर्डर से संबंधित थे। यह दुनिया भर में 15,000 सदस्यों की एक सभा है, जो भारत में कुछ सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों का संचालन करती है। यह पूरे देश में 220 से अधिक हाई स्कूल और 52 कॉलेजों का नेतृत्व करती है। जेसुइट्स से अनगिनत लीडर्स उभरे हैं। जब भारत का संविधान बनाया जा रहा था, तब फादर जेरोम डिसूजा 1946 से 1950 तक संविधान सभा के सदस्य थे। वे शोषितों, अल्पसंख्यकों और आर्थिक रूप से वंचितों के लिए बोलते थे। भारत की यात्रा करने वाले अंतिम पोप जॉन पॉल द्वितीय थे, जो 1999 में नई दिल्ली पहुंचे थे। उन्होंने फरवरी 1986 में कोलकाता का भी दौरा किया था। तब मेरी उम्र 25 वर्ष थी। पोप का स्वागत कार्डिनल लॉरेंस पिकाची ने हवाई अड्डे पर किया। मुझे धक्का-मुक्की का वह दृश्य याद है, जब मैं उन्हें फुटपाथ से निहारने की कोशिश कर रहा था। वे सफेद वस्त्र पहने हुए थे और कांच से ढके पोपमोबाइल में अलौकिक लग रहे थे। उनकी पहली आधिकारिक यात्रा मदर टेरेसा के संस्थान ‘निर्मल हृदय’ में थी। मदर उनके पास दौड़ी चली आईं और उनका अभिवादन किया। उनका हाथ पकड़कर वे उन्हें दक्षिण कोलकाता में कालीघाट मंदिर के बगल में स्थित रुग्णालय में ले गईं। वहां प्रवेश करते समय उन्होंने एक ब्लैकबोर्ड देखा, जिस पर चाक से लिखा था- ‘वी डु दिस फॉर जीसस।’ उन्होंने पार्क स्ट्रीट पर स्थित आर्चबिशप हाउस में रात बिताई और भोजन कक्ष में नाश्ता किया। आज भी जब हम उस कमरे में नाश्ता करते हैं, तो हम उस पल का आनंद लेते हैं और कहते हैं : ‘यही वह जगह है जहां पोप ने नाश्ता किया था!’ अगली शाम, शिलांग की यात्रा के बाद पोप जॉन पॉल ने ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर सामूहिक प्रार्थना की। पोप का उपदेश आशा के स्वर के साथ समाप्त हुआ : ‘जिनकी कोई आवाज नहीं है, उन्हें बोलने दें। भारत को बोलने दें। मदर टेरेसा और दुनिया के गरीबों को बोलने दें। उनकी आवाज क्राइस्ट की आवाज है। आमीन!’ ठीक 30 साल बाद, 2016 में, पोप फ्रांसिस ने वेटिकन सिटी के सेंट पीटर स्क्वायर में समारोह का नेतृत्व किया, जहां मदर टेरेसा को संत घोषित किया गया- कोलकाता की सेंट टेरेसा। मुझे यूरोप में सितंबर की उस सुबह का हर पल याद है। मुंबई के कार्डिनल ओसवाल्ड ग्रेसियस- जिन्होंने 2013 से पोप के साथ मिलकर काम किया है- ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा- उन्होंने चर्च को प्राथमिकता देने के लिए कई परियोजनाएं शुरू की... सभी आम लोगों (गैर-पादरियों) को भी चर्च के संचालन में भूमिका निभाने की अनुमति देने के लिए। हाल के दिनों में जो बात उन्हें सबसे प्रिय थी, वह थी महिलाओं को चर्च और समाज में उनका उचित स्थान देने का महत्व। आज भारत में चर्च के नेतृत्व, खास तौर पर बिशपों को पोप फ्रांसिस के स्पष्ट शब्दों से प्रेरणा लेनी चाहिए। वो कहते थे : चर्च- राजनीति की स्वायत्तता का सम्मान करते हुए- अपने मिशन को निजी क्षेत्र तक सीमित नहीं रखता है। उनके पार्थिव शरीर को कल दफनाया जाएगा। उनके शब्दों से भारत और दुनिया भर में चर्च को ताकत मिलनी चाहिए। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

कॉटन के नए कपड़ों से भी नहीं निकलेगा रंग, प्रिया राव ने खुद धोकर दिखाया, फिटकरी के साथ मिलानी है 1 सफेद चीज

अक्सर लोग, नए कपड़ों को डर-डर के धोते हैं। कपड़ों से कलर निकलने के बारे में सोचते रहते हैं। खासतौर पर डार्क कलर और कॉटन के कपड़ों के साथ यह दिक्कत ज्यादा होती है। इतना ही नहीं, कुछ लोग तो कॉटन के कपड़ों में डार्क कलर इसलिए ही नहीं खरीदते हैं। हालांकि गर्मियों के मौसम के लिए कॉटन सबसे ज्यादा फैब्रिक माना जाता है।कॉटन के कपड़े कंफर्टेबल और हवादार होते हैं। हल्के और स्टाइलिश दिखने की वजह से गर्मी के सीजन की पहनी पसंद होते हैं। लेकिन कलर निकलने की टेंशन हमेशा परेशान करती है। ऐसे में कटेंट क्रिएटर प्रिया राव ने कपड़ों को पक्का करने का तरीका बताया है, यहां तक उन्होंने खुद ही नए कपड़ों को धोकर भी दिखाया है।

वायु सेना अधिकारी की सौतेली मां को पेंशन से इनकार पर न्यायालय ने वायु सेना से किया सवाल

नयी दिल्ली, 25 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वह इस बात की जांच करेगा कि क्या भारतीय वायुसेना के नियमों के तहत पारिवारिक पेंशन के लिए सौतेली मां के नाम पर विचार किया जा सकता है या नहीं, क्योंकि ‘‘मां एक बहुत व्यापक शब्द है’’। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह [...]

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